हम आजकल ज्यादा व्यस्त हैं बेकार की बातों में। पर ऐसी गंभीर बातें जो हमारे जीवन और मृत्यु से जुड़ी हैं उसपर हम या तो ध्यान नहीं देते या तो बेपरवाह है। ये महंगा पड़ सकता है*
पर घबराईये नहीं इसका समाधान भी दे देता हूँ। *आने वाला समय विश्व ऐसी किसी भी घटना का साक्षी बन सकता है जो प्रलयकारी हो* सीधी बात बोलूं तो आप कभी भी कहीं भी किसी भी तरह से मर सकते हैं। हाँ, मुझे मालूम है आजकल ऐसी भाषा ही समझ आती है।
*खैर, आपको वो तरकीब बताने जा रहा हूँ जिससे आने वाले ऐसे त्रासदी से आप खुद को और परिवार को बचा सकते हैं*👇🏼
अग्निहोत्र, जी यही एक अचूक उपाय है जिससे हम न सिर्फ खुद को बल्कि पूरे शहर को बचा सकते हैं।
*अग्निहोत्र क्या है कैसे बचाएगा??*
यह वेदों से निकला वह अचूक नुस्खा है जिसका आचरण रोग एवं बीमारियों से लड़ने, वायु को प्रदूषण मुक्त करने हेतु हमारे समाज मे सनातन से उपयोग में लाया जा रहा है।
अग्निहोत्र एक दैनिक हवन विधि है जिसे रोज दिन में दो बार सुबह और शाम को किया जाता है, यह इतना सरल है कि इसे 5 साल का बच्चा भी कर सकता है। परंतु उतना ही प्रभावी जैसे एटमबॉम्ब।
*कैसे करना है और इससे क्या लाभ है*??
५ चीजें चाहिए। १. विशेष प्रकार से बना पिरामिड रूपी यज्ञ पात्र, २. देशी गाय के गोवर के कंडे ३. देशी गाय का घी ४. अक्षत- याने अखंडित नॉन पॉलिश्ड आर्गेनिक राइस ५. सही समय (याने ठीक सूर्यास्त और ठीक सूर्योदय का समय)।
*दो मंत्र, जिसकी पूरी जानकारी अग्निहोत्र किट में होती है। बस ठीक समय पर अग्नि प्रज्वलित कर आपको 2 आहुतियां देनी होती हैं*
*अग्निहोत्र के फायदे, ये कैसे हमे सुरक्षित रखता है*???
असल मे अग्निहोत्र की खोज हमारे ऋषियों ने की थी, जो समय के साथ लुप्त हो गया था। आज जब विश्व को इसकी जरूरत है तो ईश्वरीय प्रेरणा से यह युग प्रवर्तक माधव जी पोतदार द्वारा स्थापित किया गया है। यह संस्था *माधव आश्रम, (बैरागढ़) भोपाल* सन 1963 से सतत अग्निहोत्र के प्रचार प्रसार में लगा हुआ है। और आज पूरे विश्व मे इसका प्रसार हो चुका है। अमेरिका, यूरोप एवं अन्य देशों में तो इसके न जाने कितने ही प्रयोग करे जा चुके हैं और उन्होंने अग्निहोत्र को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाया है।
यज्ञ क्या है भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग क्यूँ है, इसे किस लिए किया जाता है?? जैसा कि पूरे विश्व को ज्ञात है भारतीय संस्कृति विश्व भर में सबसे पुरानी और सबसे आधुनिक संस्कृति मानी जाती है। कारण यह है कि ये संस्कृति विज्ञान पर आधारित है यह धर्म नहीं है बल्कि जीवन पद्धति है जो प्राकृतिक सिद्धांतों और रहस्यों को गहनता से समझती और उनके नियमों अनुसार अपना जीवन यापन करती है यही वजह है कि भारतीय ज्ञान विज्ञान का डंका पूरे विश्व मे बजता है। यज्ञ, वह पद्धति है जिसमे विशेष किस्म की लकड़ियाँ, गोवर के कंडे, विशेष प्रकार के औषधियों एवं देशी गाय के घी को अग्नि में विशेष मंत्रों द्वारा आहुतियां दी जाती है। आधुनिक विज्ञान भी अब यज्ञ पर आए दिन रिसर्च कर रहा है और इसके चौकाने वाले परिणामो को दुनिया के सामने लेकर आ रहा है।
असल में, अग्निहोत्र एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है और ऐसा यज्ञ है जिसे घर पर रोज किया जाता है इतना आसान है कि एक बच्चा भी कर सकता है। परंतु प्रभावी भी उतना ही है, जब विशेष रूप से बने ताम्र के पात्र में (ताम्र पात्र को विधुत का सबसे अच्छा सुचालक माना गया है, ब्रह्मांडीय विधुतचुम्बकीय तरंगों को यह आकर्षित करने का कार्य करता है) विशेष समय अर्थात सूर्योदय और सूर्यास्त को यज्ञ किया जाता है तो इसका असर 8000 घन मीटर के दायरे तक होता है अतः इतनी दूर तक वायु में उपस्थित प्रदूषण दूर हो जाते हैं किसी भी किस्म का फंगस, वायरस या अन्य हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है।
इस यज्ञ में जो देशी गाय के कंडे, अक्षत एवं गाय के घी का उपयोग होता है उससे मेंथोल, अमोनिया, फिनोल, इंडोल, फिनोल, फरमिलींन तथा नाइट्रोजन (0.32%), फॉस्फोरिक एसिड(0.21%) तथा पोटाश(0.16%) पाया जाता है।
इटली के वैज्ञानिक डॉ बिगेड की खोज है कि गाय के ताजे गोवर की गंध मात्र से बुखार एवं मलेरिया के रोगाणु नस्ट हो जाते हैं। "न्यूयॉर्क टाइम्स" के अनुसार "पोषक आहार पर पली गाय के गोवर जैसी कीटाणु नाशक शक्ति अन्यत्र नहीं" गाय के गोवर से लिपि-पुती वस्तुवे एवं घर की दीवारें अणु विस्फोट के घातक विकिरणों की रोकथाम करती है तथा अंतरिक्ष यान उत्पन्न होने वाली भीषण गर्मी को गाय का गोवर कम करता है, यह रशियन वैज्ञानिकों की खोज है। गाय के गोवर से बने कण्डों की अग्नि ही अग्निहोत्र में प्रयुक्त होने के पीछे उसके इसी रोगाणु निरोधक तत्वों का महत्व है।
पूना के फर्ग्युसन कालेज के जीवाणु शास्त्रियों ने एक प्रयोग में पाया है कि नित्य अग्निहोत्र के एक समय की आहुतियों में 36x32x10 फुट के हाल की 8000 घनफुट वायु में कृत्रिम रूप से निर्मित वायु प्रदूषण खत्म हुआ। इस प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि एक समय के अग्निहोत्र से ही 8000 घन फुट वायु का 77.5% हिस्सा शुद्ध एवं पुष्टिकारक गैसों से युक्त होता है। उस प्रयोग से यह भी सिद्ध हुआ कि एक समय के अग्निहोत्र के प्रभाव से 90% हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं।
गोघृत के जलने से उत्पन्न गैस प्रकृति-चक्र संतुलित करने का कार्य करती है। जिस स्थान पर गोघृत से अग्निहोत्र होता है वहाँ के वातावरण से रोगजनक कीटाणु नष्ट होते हैं। मनुष्य, पशु-पक्षी प्राणी एवं वनस्पति आदि सजीव सृष्टि के लिए शुद्ध एवं पुष्टिदायक वातावरण निर्माण करना गोघृत का कार्य है। गोघृत का वर्णन वेदों में "आयुर्वेघृतं" के रुप मे किया है। यानी गोघृत ही जीवन है। "औषधियों की औषधी" के रूप में प्राचीन चिकित्सक इसका गौरवगाण करते हैं। गाय का घी इस भूतल पर बेजोड़ पदार्थ है।
_याद रहे, भैंस, जर्सी, होलिस्टन या अन्य संकर नस्लों को गाय कहलाने की पात्रता नहीं है, क्यूँकि इनके दूध, दही या फिर घी में देशी गाय जैसे गुण नहीं पाए गए। वैज्ञानिक तौर पर अब सिद्ध हो चुका है कि इन जानवरों के दूध, दही या घी हानिकारक हैं। अतः इनके घी से हो हवन आदि होगा उसके हानिकारक परिणाम निकलेंगे। *बिना गोघृत के होने वाले दीगर हवन-यज्ञ, मानव स्वास्थ्य तथा वायुमंडल के लिए हानिकारक होते ही हैं अपितु वेद विरुद्ध होने से अविधि एवं अनिष्टकारक भी हैं।_
गाय के घी में किन किन तत्वों का समावेश है इसका अभी पूरा पता नहीं चला है, किंतु अंदाजन इसमे 11 एसिड, 12 धातुवें, 2 लेक्टोज़, 4 गैसें होती हैं।
_*सदैव ध्यान रहे कि देशी गाय के घी के बिना अग्निहोत्र नहीं हो सकता। गाय का घी अतिआवश्यक
*जलवायु प्रदूषण को दूर करने, संक्रमण काल से लड़ने एवं रोगमुक्त खुशहाल जीवन हेतु* नित्य अग्निहोत्र करें।🙏🏼💐
पर घबराईये नहीं इसका समाधान भी दे देता हूँ। *आने वाला समय विश्व ऐसी किसी भी घटना का साक्षी बन सकता है जो प्रलयकारी हो* सीधी बात बोलूं तो आप कभी भी कहीं भी किसी भी तरह से मर सकते हैं। हाँ, मुझे मालूम है आजकल ऐसी भाषा ही समझ आती है।
*खैर, आपको वो तरकीब बताने जा रहा हूँ जिससे आने वाले ऐसे त्रासदी से आप खुद को और परिवार को बचा सकते हैं*👇🏼
अग्निहोत्र, जी यही एक अचूक उपाय है जिससे हम न सिर्फ खुद को बल्कि पूरे शहर को बचा सकते हैं।
*अग्निहोत्र क्या है कैसे बचाएगा??*
यह वेदों से निकला वह अचूक नुस्खा है जिसका आचरण रोग एवं बीमारियों से लड़ने, वायु को प्रदूषण मुक्त करने हेतु हमारे समाज मे सनातन से उपयोग में लाया जा रहा है।
अग्निहोत्र एक दैनिक हवन विधि है जिसे रोज दिन में दो बार सुबह और शाम को किया जाता है, यह इतना सरल है कि इसे 5 साल का बच्चा भी कर सकता है। परंतु उतना ही प्रभावी जैसे एटमबॉम्ब।
*कैसे करना है और इससे क्या लाभ है*??
५ चीजें चाहिए। १. विशेष प्रकार से बना पिरामिड रूपी यज्ञ पात्र, २. देशी गाय के गोवर के कंडे ३. देशी गाय का घी ४. अक्षत- याने अखंडित नॉन पॉलिश्ड आर्गेनिक राइस ५. सही समय (याने ठीक सूर्यास्त और ठीक सूर्योदय का समय)।
*दो मंत्र, जिसकी पूरी जानकारी अग्निहोत्र किट में होती है। बस ठीक समय पर अग्नि प्रज्वलित कर आपको 2 आहुतियां देनी होती हैं*
*अग्निहोत्र के फायदे, ये कैसे हमे सुरक्षित रखता है*???
असल मे अग्निहोत्र की खोज हमारे ऋषियों ने की थी, जो समय के साथ लुप्त हो गया था। आज जब विश्व को इसकी जरूरत है तो ईश्वरीय प्रेरणा से यह युग प्रवर्तक माधव जी पोतदार द्वारा स्थापित किया गया है। यह संस्था *माधव आश्रम, (बैरागढ़) भोपाल* सन 1963 से सतत अग्निहोत्र के प्रचार प्रसार में लगा हुआ है। और आज पूरे विश्व मे इसका प्रसार हो चुका है। अमेरिका, यूरोप एवं अन्य देशों में तो इसके न जाने कितने ही प्रयोग करे जा चुके हैं और उन्होंने अग्निहोत्र को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाया है।
यज्ञ क्या है भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग क्यूँ है, इसे किस लिए किया जाता है?? जैसा कि पूरे विश्व को ज्ञात है भारतीय संस्कृति विश्व भर में सबसे पुरानी और सबसे आधुनिक संस्कृति मानी जाती है। कारण यह है कि ये संस्कृति विज्ञान पर आधारित है यह धर्म नहीं है बल्कि जीवन पद्धति है जो प्राकृतिक सिद्धांतों और रहस्यों को गहनता से समझती और उनके नियमों अनुसार अपना जीवन यापन करती है यही वजह है कि भारतीय ज्ञान विज्ञान का डंका पूरे विश्व मे बजता है। यज्ञ, वह पद्धति है जिसमे विशेष किस्म की लकड़ियाँ, गोवर के कंडे, विशेष प्रकार के औषधियों एवं देशी गाय के घी को अग्नि में विशेष मंत्रों द्वारा आहुतियां दी जाती है। आधुनिक विज्ञान भी अब यज्ञ पर आए दिन रिसर्च कर रहा है और इसके चौकाने वाले परिणामो को दुनिया के सामने लेकर आ रहा है।
असल में, अग्निहोत्र एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है और ऐसा यज्ञ है जिसे घर पर रोज किया जाता है इतना आसान है कि एक बच्चा भी कर सकता है। परंतु प्रभावी भी उतना ही है, जब विशेष रूप से बने ताम्र के पात्र में (ताम्र पात्र को विधुत का सबसे अच्छा सुचालक माना गया है, ब्रह्मांडीय विधुतचुम्बकीय तरंगों को यह आकर्षित करने का कार्य करता है) विशेष समय अर्थात सूर्योदय और सूर्यास्त को यज्ञ किया जाता है तो इसका असर 8000 घन मीटर के दायरे तक होता है अतः इतनी दूर तक वायु में उपस्थित प्रदूषण दूर हो जाते हैं किसी भी किस्म का फंगस, वायरस या अन्य हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है।
इस यज्ञ में जो देशी गाय के कंडे, अक्षत एवं गाय के घी का उपयोग होता है उससे मेंथोल, अमोनिया, फिनोल, इंडोल, फिनोल, फरमिलींन तथा नाइट्रोजन (0.32%), फॉस्फोरिक एसिड(0.21%) तथा पोटाश(0.16%) पाया जाता है।
इटली के वैज्ञानिक डॉ बिगेड की खोज है कि गाय के ताजे गोवर की गंध मात्र से बुखार एवं मलेरिया के रोगाणु नस्ट हो जाते हैं। "न्यूयॉर्क टाइम्स" के अनुसार "पोषक आहार पर पली गाय के गोवर जैसी कीटाणु नाशक शक्ति अन्यत्र नहीं" गाय के गोवर से लिपि-पुती वस्तुवे एवं घर की दीवारें अणु विस्फोट के घातक विकिरणों की रोकथाम करती है तथा अंतरिक्ष यान उत्पन्न होने वाली भीषण गर्मी को गाय का गोवर कम करता है, यह रशियन वैज्ञानिकों की खोज है। गाय के गोवर से बने कण्डों की अग्नि ही अग्निहोत्र में प्रयुक्त होने के पीछे उसके इसी रोगाणु निरोधक तत्वों का महत्व है।
पूना के फर्ग्युसन कालेज के जीवाणु शास्त्रियों ने एक प्रयोग में पाया है कि नित्य अग्निहोत्र के एक समय की आहुतियों में 36x32x10 फुट के हाल की 8000 घनफुट वायु में कृत्रिम रूप से निर्मित वायु प्रदूषण खत्म हुआ। इस प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि एक समय के अग्निहोत्र से ही 8000 घन फुट वायु का 77.5% हिस्सा शुद्ध एवं पुष्टिकारक गैसों से युक्त होता है। उस प्रयोग से यह भी सिद्ध हुआ कि एक समय के अग्निहोत्र के प्रभाव से 90% हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं।
गोघृत के जलने से उत्पन्न गैस प्रकृति-चक्र संतुलित करने का कार्य करती है। जिस स्थान पर गोघृत से अग्निहोत्र होता है वहाँ के वातावरण से रोगजनक कीटाणु नष्ट होते हैं। मनुष्य, पशु-पक्षी प्राणी एवं वनस्पति आदि सजीव सृष्टि के लिए शुद्ध एवं पुष्टिदायक वातावरण निर्माण करना गोघृत का कार्य है। गोघृत का वर्णन वेदों में "आयुर्वेघृतं" के रुप मे किया है। यानी गोघृत ही जीवन है। "औषधियों की औषधी" के रूप में प्राचीन चिकित्सक इसका गौरवगाण करते हैं। गाय का घी इस भूतल पर बेजोड़ पदार्थ है।
_याद रहे, भैंस, जर्सी, होलिस्टन या अन्य संकर नस्लों को गाय कहलाने की पात्रता नहीं है, क्यूँकि इनके दूध, दही या फिर घी में देशी गाय जैसे गुण नहीं पाए गए। वैज्ञानिक तौर पर अब सिद्ध हो चुका है कि इन जानवरों के दूध, दही या घी हानिकारक हैं। अतः इनके घी से हो हवन आदि होगा उसके हानिकारक परिणाम निकलेंगे। *बिना गोघृत के होने वाले दीगर हवन-यज्ञ, मानव स्वास्थ्य तथा वायुमंडल के लिए हानिकारक होते ही हैं अपितु वेद विरुद्ध होने से अविधि एवं अनिष्टकारक भी हैं।_
गाय के घी में किन किन तत्वों का समावेश है इसका अभी पूरा पता नहीं चला है, किंतु अंदाजन इसमे 11 एसिड, 12 धातुवें, 2 लेक्टोज़, 4 गैसें होती हैं।
_*सदैव ध्यान रहे कि देशी गाय के घी के बिना अग्निहोत्र नहीं हो सकता। गाय का घी अतिआवश्यक
*जलवायु प्रदूषण को दूर करने, संक्रमण काल से लड़ने एवं रोगमुक्त खुशहाल जीवन हेतु* नित्य अग्निहोत्र करें।🙏🏼💐

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