सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं
🌎 *अपने स्वामी आप बनिए*
                 -------------

🌔  *"आप"* का कल्याण,  *"आप"* का अभ्युत्थान, *"आप"* की स्थायी सफलता, जीवन-यात्रा की पूर्णता,  *"आप"* की स्थायी सुख-शांति, आनंद की निधियाँ,  इसी पर आधारित हैं कि *"आप"* अपने हृदय में स्थित उस केंद्र बिंदु की खोज करें, *जिसमें अपार शक्ति है, अनंत सामर्थ्य है ।* इसी सत्य को जीवन का प्रेरक बनाकर अपनी विजय का आधार बनाएँ । किनारे-किनारे भटकने के बजाय अंतर के गर्भ में ही गोता लगाएँ, पत्ती-पत्ती ढूँढने के बजाय जीवन-वृक्ष के मूल में ही विश्राम करें ।

🌖 अपने अंतर को केंद्र बनाकर जीवन की गतिविधियाँ चालू रखें, जैसे सूर्य को केंद्र मानकर ग्रह-नक्षत्र चलते हैं । *अपने शासक "आप" बनें ।* दूसरे व्यक्तियों की सहायता की आशा में न बैठे  रहें, अपने अंतर के देव का आवाहन करें । *दूसरों से प्रेम करें, लेकिन उनके प्रेम के मुहताज न बनें । दूसरों से सहानुभूति रखें, उन्हें सहयोग करें, लेकिन दूसरों की सहानुभूति, सहायता की इच्छा न रखें ।*

🌒 अपने बादशाह बनकर, स्वामी बनकर जीवन का संचालन करें । जन्म से लेकर मरण तक, अपना पथ स्वयं तैयार करें । अपने ही पैरों पर चलें । *यह निश्चित है कि जब तक आप अपनी सहायता, पथ-प्रदर्शन के लिए "देवताओं," "स्वर्गीय दूतों," "मनुष्यों" की सहायता की याचना करते रहेंगे, तब तक आप पराधीनता, दुःख, अशांति, पराजय से छुटकारा नहीं पा सकते ।* इनसे छुटकारा पाने का एक ही आधार है कि *अपने अंतर प्रकाश से स्वयं अपना हृदय प्रकाशित करें ।*

✍अखण्डज्योतिअक्टूबर१९६४पृष्ठ१३🙏 *शुभ-रात्रि*-मित्रों

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भोग नहीं, त्याग

*रामायण में भोग नहीं, त्याग है* *भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।* *एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?* *मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया ।* *श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।* *माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?* *शत्रुघ्न कहाँ है ?* *श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।* *उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया ।* *तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।* *आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?* *अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।* *माँ सिर...

सफर और #हमसफ़र

#सफर और #हमसफ़र ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जर्नल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते । वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही। फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया। चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे। मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डा...

सफर और #हमसफ़र

#सफर और #हमसफ़र ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जर्नल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते । वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही। फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया। चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे। मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डा...