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आत्मनिरीक्षण और उसकी महत्ता*

🌎 *आत्मनिरीक्षण और उसकी महत्ता*
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🌖 *"दूसरों के गुण-दोष विवेचन में मनुष्य जितना समय खर्च करता है," "उसका "एक प्रतिशत भी यदि आत्मनिरीक्षण में लगाए तो आदर्श मनुष्य बन जाए ।"* दूसरों के दोष आँख से दीख जाते हैं, *पर अपने दोषों का चिंतन, मन के शांत होने पर स्वयं करना पड़ता है ।* शरीर का दर्पण तो कारीगरों ने बना दिया है, *पर चरित्र का दर्पण अभी तक कोई नहीं बना और न बनेगा ।* जो व्यक्ति *"छिद्रान्वेषण"* करते हैं, वे प्रायः छिपकर करते हैं । पीठ पीछे सब एक दूसरे को भला-बुरा कह लेते हैं, निंदा कर लेते हैं । *हमारी बातचीत का विषय ही प्रायः "परनिंदा" होता है ।* मन में दुर्भावना रहते हुए अक्सर लोग चापलूसी भरी प्रशंसा करते रहते हैं । *मनुष्य-चरित्र की यह सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह अपनी प्रशंसा का सदा भूखा रहता है ।* अंतिम साँस तक भी मनुष्य की यह भूख नहीं जाती ।

🌒 सच्चाई तो वही है, जो हमारे अंतःकरण में छिपी है । अपना गुप्तचर आप बनकर ही हम उसका अनुसंधान कर सकते हैं । *यह आत्मपरीक्षा ही हमें, हमारे चरित्र के असली स्वरूप को हमारे सामने प्रकट करेगी और तभी हम चरित्र में सुधार कर सकेंगे ।*

🌘 *हमारा "व्यवहार" ही हमारे "चरित्र" का प्रतिनिधित्व करता है । हमें अपने को अपने ज्ञान से नहीं, वरन् अपने "व्यवहार" से परखना चाहिए ।*

✍अखण्डज्योतिदिसम्बर१९६४पृष्ठ१४🙏 *शुभ-रात्रि*-मित्रों

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